New By Uttarakhand Sandesh 2021-02-16

चमोली आपदा: 20 सालों में दो बार आपदा झेल चुकी नीती घाटी, डेढ़ माह तक घरों में कैद रहे थे लोग

चीन सीमा क्षेत्र में स्थित नीती घाटी के गांवों के ग्रामीण बीस सालों में दो बार आपदा झेल चुके हैं। इस आपदा में मलारी हाईवे का पुल समेत हाईवे दो किमी तक बह गया था और लोग घरों में कैद हो गए थे। साथ ही लोगों की कृषि भूमि भी बह गई थी। उस समय सेना और आईटीबीपी ग्रामीणों की जीवनरक्षक बनकर आई थी।  नीती घाटी चारों ओर से पर्वत चोटियों और उच्च हिमालय क्षेत्र से घिरी है। घाटी में बीस वर्ष पहले भी ग्लेशियर टूटने की घटना हुई थी। वर्ष 2000 में तोलमा गांव के ठीक सामने ग्लेशियर टूटने से सुरांईथोटा में मलारी हाईवे का पुल बह गया था। उस समय भी सेना और आईटीबीपी ग्रामीणों की रक्षा के लिए आगे आई थी। आईटीबीपी ने ग्रामीणों के साथ ही उनके मवेशियों को भी हेली रेस्क्यू कर जोशीमठ पहुंचाया था। चमोली आपदा: बैराज साइट पर बनी दलदल में कई लोगों के दबे होने की आशंका, ऐसे हो रही तलाश, तस्वीरें स्थिति सामान्य होने के बाद ग्रामीण वर्ष 2005 में द्रोणागिरी गांव के समीप दोगड़ी ग्लेशियर के टूटने से मलारी हाईवे करीब दो किलोमीटर तक बह गया था, जिससे करीब डेढ़ माह तक ग्रामीण अपने घरों में ही कैद होकर रह गए थे। तब यहां सड़क की नई हिल कटिंग कर वाहनों की आवाजाही शुरू कराई गई थी। तोलमा गांव निवासी प्रेम बुटोला ने बताया कि घाटी द्रोणागिरी और चीन सीमा क्षेत्र से ग्लेशियरों से घिरी हुई है। अब सात फरवरी को ऋषि गंगा में आए सैलाब के बाद उपजे हालात के चलते नीती घाटी के 13 गांवों के ग्रामीण फिर अपने गांवों में ही कैद होकर रह गए हैं।  विषम भौगोलिक परिस्थितियों की घाटी है नीती नीती घाटी में भोटिया जनजाति के ग्रामीण रहते हैं। यहां शीतकाल में छह माह तक बर्फबारी और बारिश रहती है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिकांश गांव बर्फ के आगोश में रहते हैं। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी ग्रामीणों की दिनचर्या गांवों में ही व्यतीत होती है। ग्रामीण कड़ाके की ठंड से बचने के लिए ग्रीष्मकाल में ही जंगलों से सूखी लकड़ी और खाद्यान्न सामग्री इकट्ठा कर लेते हैं। दोपहर बाद घाटी में चक्रवात और बर्फीली हवाएं चलती हैं। घाटी के ऊंचाई वाले गांव नीती, मलारी, बांपा, फरकिया, महरगांव, द्रोणागिरी, कागा, गरपक गांव के ग्रामीण शीतकाल में छह माह तक जिले के निचले क्षेत्रों में रहते हैं, जबकि जेलम, तमक, फाक्ती, लाता, सुरांईथोटा, सुकी, भलगांव, लौंग, पेंग, तोलमा गांव के ग्रामीण शीतकाल में भी अपने गांवों में रहते हैं। ग्रामीणों का सेना के साथ है बेहतर समन्वय  चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण नीती घाटी के ग्रामीणों का सेना और आईटीबीपी के जवानों के साथ बेहतर समन्वय रहता है। किसी भी आपदा में सैन्य बलग्रामीणों की हरसंभव मदद के लिए आगे रहता है। ग्रामीण भी सेना को हर तरह की मदद के लिए तैयार रहते हैं।